तबादला एक आधुनिक उद्योग
भला हो हमारी कल्याणकारी लोक सरकारों का, जिनकी वजह से हमें आजाद भारत में घर बैठे एक नया उद्योग मिल गया जिसे हम मजे-मजे में तबादला उद्योग कह सकते है | वैसे तो किसी उद्योग या धंधे की स्थापना में बेचारे उद्योगपति को नाकों चने चबाने पड़ते है | लेकिन सरकार की कृपा से तबादला एक ऐसा उद्योग बन गया जो पुरे प्रदेश में खूब फल-फूल रहा है| यूँ तो यह उद्योग साल भर चलता है लेकिन जब सरकार तबादलों पर से बैन हटा देती है तब इसकी छटा देखने लायक होती है | पुरे प्रदेश के विभिन्न महकमों के कर्मचारी अपने- अपने घरों से आटे के लड्डू बनवाकर राजधानी की धर्मशालाओ और होटलों में डेरा डाल लेते है | बेचारे सचिवालय में ऐसे भटकते है जैसे हिंगोनिया की गौशाला में लावारिस गायें | कई भोले कर्मचारी तो राजधानी की सड़कों पर इधर-उधर टक्कर मार अपनी घरवाली के हाथ के बनाये आचार पराठें खाकर वापस लोट आते है | क्योंकि उन्हें मंत्रीगण मिलते ही नही है | वे मंत्रियों को उनके मंत्रालयों में ढूंढते रहते है पर नेताजी किसी गुप्त कोठी में बैठकर तबादले की सूचियों बना रहे होते है | तबादला उद्योग की एक प्रमुख कड़ी होती है ‘दलाल’ नाम का जीव | जिसे सच्चा दलाल मिल जाता है वह माल पीकर तबादला करा देता है वरना बाकी लोग तो हाथ में तबादले की अर्जी लेकर रोते ही फिरते रहते है | तबादला उद्योग में एक भारी तत्व काम करता है वह है ‘डिजायर’ | ‘डिजायर’ आम तौर पर सताधारी दल के नेताओं को भी अपना महत्व दिखलाने का मौका मिल जाता है | दो-तीन दशक पहले तक तो तबादले उच्च अधिकारी ही कर दिया करते थे अब तो अफसर क्या प्रमुख सचिवों तक के वश की बात नही रही | चपरासी के ट्रांसफर के लिए भी मुख्मंत्री कार्यालय की ‘अप्रूवल’ लेनी पड़ती है | कहते है इस उद्योग के करोड़ो के वारेन्यारे है | आभार:राजस्थान-पत्रिका
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