ओसियां राजस्थान
ओसियां राजस्थान के जोधपुर नगर से 32 मील (लगभग 51.2 कि.मी.) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ 9वीं शती से 12वीं शती ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, कृष्ण, तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।आठवीं से दसवीं शताब्दी तक राजस्थान में मंदिर स्थापत्य की एक 'महामारू शैली' का विकास हुआ था। इस शैली ने जैन और वैष्णव परम्परा को सैकड़ों सुंदर मंदिर तथा देवालय दिये हैं। ओसियां के जैन मंदिर भी इसी शैली के जीवंत प्रमाण हैं। ओसियां में भगवान महावीर के मुख्य जैन मंदिर के अतिरिक्त और भी कई मंदिर हैं, जिनमें भगवान शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्द्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, दिक्पाल, श्रीकृष्ण, पिप्पलाद माता एवं सचिया माता आदि उल्लेखनीय हैं। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प, पत्थर पर खुदाई और प्रतिमा निर्माण, प्रत्येक वस्तु दर्शनीय हैं।
गुप्तकालीन शिल्प
ओसियां की कला पर गुप्तकालीन कला और स्थापत्य का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। ग्राम के अंदर जैन तीर्थंकर महावीर का एक सुन्दर मन्दिर है, जिसे वत्सराज (770-800 ई.) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। यहीं एक स्थान पर 'संवत 1075 आषाढ़ सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने विक्रम संवत् 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है, जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि. सं. में इसके मंडप का निर्माण हुआ था।
मन्दिर, ओसियां
निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह 'सचिया देवी' या शिलालेखों की 'सच्चिकादेवी' से संबधित है, जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि. सं. का भी है, जिससे इसका जैन धर्म से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की पूजा राजस्थान के जैन सम्प्रदाय में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन ग्रंथ 'उपकेश गच्छ पट्टावलि' में वर्णित है।[3] इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्य मंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन कृष्ण की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति राजस्थानी कला की अनुपम कृति मानी जा सकती है।
प्रतिमाएँ
ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।
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