घुश्मेश्वर शिवालय
घुश्मेश्वर शिवालय राजस्थान के शिवालय (शिवाड) ग्राम में विराजमान है। यह ज्योतिर्लिंग स्वयम्भू है अर्थात यह किसी के द्वारा निर्मित नहीं किया गया, अपितु स्वयं उत्पन्न है। पुरातनकाल में इस स्थान का नाम शिवालय था जो अपभ्रंश होता हुआ, शिवाल से शिवाड नाम से जाना जाने लगा। शिवाड स्थित ज्योतिर्लिंग मंदिर के दक्षिण में भी तीन श्रृंगों वाला धवल पाषणों का प्राचीन पर्वत है, जिसे देवगिरी के नाम से जाना जाता है। यह महाशिवरात्रि पर एक पल के लिए सुवर्णमय हो जाता है, जिसकी पुष्टि बंजारे की कथा में होती है कि जिसने देवगिरी से मिले स्वर्ण प्रसास से ज्योतिर्लिंग की प्राचीरें एवं ऋण मुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में करवाया।
मंदिर का वास्तुशिल्प पाणिनी के अष्टांगिक योग पर आधारित है। इस शिल्पकला में समाधि प्रिय शिव का सान्निध्य योग बल से ही संभव मान कर निर्माण किया जाता है। इस मंदिर में यम एवं नियम की पांच- पांच सोपान (सीढियाँ), नंदी (आसन), पवनपुत्र (प्राणायाम), कछुआ (प्रत्याहार), गणेश (धारणा), माता पार्वती (ध्यान), भगवान् शंकर (समाधिस्थ) विराजमान है जो कि अष्टांगिक योग पर आधारित वास्तुकला की पुष्टि करते हैं। 1998 में खुदाई पर मिली कच्छपावतार की समुद्र मंथन मूर्ति अष्टांगिक योग में प्रत्याहार का प्रतिनिधित्व करती है।
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