हम और अड़ियल खच्चर
कोई हजार बरस पहले रेगिस्तान में एक बंजारा हुआ था- लख्खी बंजारा। कहते हैं जितना बड़ा कारवां उसका चलता था, उतना किसी और के पास नहीं था। सैकड़ों ऊंट, बैलगाडिय़ां, घोड़े, गधे और खच्चरों पर गेहूं, चावल, मोठ, उड़द, कपड़े-लत्ते, मसाले और न जाने क्या-क्या लदा रहता। लेकिन कई बार बंजारे के खच्चर अड़ जाते तो चलने का नाम नहीं लेते। एक बार ऐसा ही हुआ। एक खच्चर अड़ गया तो बाकी भी अड़ गए। सारा कारवां रुक गया। बंजारा परेशान। तभी एक गांव का बूढ़ा आया और उसने अड़े हुए खच्चर के मुंह में मिट्टी डाल दी। खच्चर चल पड़ा। लख्खी बंजारे ने पूछा- बूढ़े बाबा। यह कौन-सा करिश्मा किया। बूढ़े ने कहा- कुछ नहीं। बस मुंह में मिट्टी डाल कर इस खच्चर के भीतर चल रही विचारों की धारा को तोड़ दिया। खच्चर सोच रहा था कि अड़ा रहूंगा। पर मुंह में मिट्टी आने से बेचैन हो गया और भाव धारा यानी अंडर करंट टूट गया। पाठकगण। जब से हमने खच्चर की कहानी पढ़ी है तब से हम अपने आपको बुद्धिमान आदमी की बजाय मूर्ख खच्चर समझने लगे हैं। हमें भी लगता है कि जब-जब हमारे मस्तिष्क में विचारों की धारा चलती है तभी हमारे नेता किसी न किसी युक्ति से उस धारा को तोड़ देते हैं। उदाहरण के लिए पिछले कुछ अर्से से महंगाई जोरों पर है, भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग रही, लाखों बच्चे बेरोजगार घूम रहे हैं, राज्य सरकारें मनमानी कर रही हैं। हमारे दिमाग में इन सारी बातों को लेकर जैसे ही असंतोष उभरता है अचानक 'सर्जिकल स्ट्राइक' सरीखा मुद्दा सामने आ जाता है और असंतोष की भाव धारा भंग हो जाती है। यही खेल पाकिस्तान में चल रहा है और यही हिन्दुस्तान में। पाकिस्तान में जब भी आम जनता में मौजूदा व्यवस्था के प्रति अविश्वास पनपता है तभी वे कश्मीर का रोना लेकर बैठ जाते हैं और भारत से 'रागयुद्ध' आलापने लगते हैं। अब हम अपने को खच्चर न माने तो क्या मानुष माने।
आभार : राजस्थान-पत्रिका
Post A Comment:
0 comments: