About_Jodhpur

Jodhpur City in Rajasthan India



जोधपुर


भारत के राज्य राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। इसकी जनसंख्या 10 लाख के पार हो जाने के बाद इसे राजस्थान का दूसरा "महानगर " घोषित कर दिया गया था। यह यहां के ऐतिहासिक रजवाड़े मारवाड़ की राजधानी भी हुआ करता था। जोधपुर थार के रेगिस्तान के बीच अपने ढेरों शानदार महलों, दुर्गों और मन्दिरों वाला प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है।

वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण इसे "सूर्य नगरी" (Sun City) भी कहा जाता है। यहां स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे "नीली नगरी" (Blue City) के नाम से भी जाना जाता था। यहां के पुराने शहर का अधिकांश भाग इस दुर्ग को घेरे हुए बसा है, जिसकी प्रहरी दीवार में कई द्वार बने हुए हैं। जोधपुर की भौगोलिक स्थिति राजस्थान के भौगोलिक केन्द्र के निकट ही है, जिसके कारण ये नगर पर्यटकों के लिये राज्य भर में भ्रमण के लिये उपयुक्त आधार केन्द्र है।

वर्ष 2014 के विश्व के अति विशेष आवास स्थानों (मोस्ट एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्लेसेज़ ऑफ़ द वर्ल्ड) की सूची में जोधपुर  का प्रथम स्थान था। एक तमिल फ़िल्म, “आई” ( I ), जो कि अब तक की भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फ़िल्म है , की शूटिंग भी यहां हुई थी।

सूर्य नगरी के नाम से प्रसिद्ध जोधपुर शहर की पहचान यहां के महलों और पुराने घरों में लगे छितर के पत्थरों से होती है, पन्द्रहवी शताब्दी का विशालकाय मेहरानगढ़ दुर्ग , पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से 125 मीटर ऊंचाई पर विद्यमान है। आठ द्वारों व अनगिनत बुजों से युक्त यह शहर दस किलोमीटर लंबी ऊंची दीवार से घिरा है। पूरे शहर में बिखरे वैभवशाली महल ,किले और मंदिर , एक तरफ जहां ऐतिहासिक गौरव को जीवंत करते हैं वही दूसरी ओर उत्कृष्ट हस्तकलाएं लोक नृत्य ,संगीत और प्रफुल्ल लोग शहर में रंगीन समां बांध देते हैं।

जीवन शैली

जोधपुर शहर के लोग बहुत मिलनसार होते है, ये सदैव दुसरों की मदद के लिये तत्पर रहते है | जोधपुर के कपड़ो में जोधपुरी कोट पुरे भारत मे प्रसिद्ध है, पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने इसे एक अलग पहचान दिलाई है।

शिक्षा क्षेत्र

राजस्थान में जोधपुर शिक्षा के क्षेत्र मे बहुत आगे हैं। दुर दुर से विद्यार्थी यहाँ पढ़ने के लिये आते है। जोधपुर को CA कि खान कहा जाता है। पूरे भारत मे सबसे ज्यादा CA यहीं से निकलते है। शिक्षा के लिये यहां पर विकल्प मौजूद है। यहाँ विश्व प्रसिद्ध आईआईटी , नेशनल लो युनिवर्सिटी, एम्स, काजरी , आफरी आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय स्थित है। इनके अलावा जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय तथा राजस्थान विश्वविद्यालय भी है साथ ही बालिकाओं के लिए भी कॉलेज है। जोधपुर में लगभग हर गांव में विद्यालय है।

उपलब्धियां

जोधपुर को राजस्थान की न्यायिक राजधानी कहा जाता है, राजस्थान का उच्च न्यायालय भी जोधपुर में ही स्थित है।  पुरे विश्व से जुड़ने के लिये अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी मौजुद है। पुरे राजस्थान के प्रसिद्ध विभाग जैसे मौसम विभाग , नार्कोटिक विभाग सी बी आइ, कस्टम ,वस्त्र मन्त्रालय आदि मौजूद है।

मुख्य आकर्षण : जोधपुर के दर्शनीय स्थल

मेहरानगढ़ का किला : मेहरानगढ़ दुर्ग

मेहरानगढ़ दुर्ग 125 मीटर ऊँची पहाड़ी के बिल्‍कुल ऊपर बसे होने के कारण राजस्‍थान के सबसे खूबसूरत किलों में से एक है। इस किले के सौंदर्य को श्रृंखलाबद्ध बने द्वार और भी बढ़ाते हैं। इन्‍हीं द्वारों में से एक है - जयपोल इसका निर्माण राजा मानसिंह ने 1806 ईस्वी में किया था। दूसरे द्वार का नाम है - विजयद्वार इसका निर्माण राजा अजीत सिंह ने मुगलों पर विजय के उपलक्ष्‍य में किया था। किले के अंदर में भी पर्यटकों को देखने हेतु कई महत्‍वपूर्ण इमारतें हैं। जैसे मोती महल, सुख महल, फूलमहल आदि - आदि।
यह पांच किलोमीटर लंबा भव्य किला बहुत ही प्रभावशाली और विकट इमारतों में से एक है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना। इन महलों में भारतीय राजवंशो के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है।

जसवंत थड़ा 

यह पूरी तरह से मार्बल निर्मित है। इसका निर्माण 1899 में राजा जसवंत सिंह (द्वितीय) और उनके सैनिकों की याद में किया गया था। इसकी कलाकृति आज भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय की याद में सफेद संगमरमर से  निर्मित यह शाही स्मारकों का समूह है। मुख्य स्मारक के अंदर जोधपुर के विभिन्न शासकों के चित्र हैं।

उम्‍मैद महल 

महाराजा उम्‍मैद सिंह ने इस महल का निर्माण सन 1943 में किया था। मार्बल और बालूका पत्‍थर से बने इस महल का दृश्‍य पर्यटकों को खासतौर पर लुभाता है। इस महल के संग्रहालय में पुरातन युग की घडियां और पेंटिंग्‍स भी संरक्षित हैं। यही एक ऐसा बीसवीं सदी का महल है जो बाढ़ राहत परियोजना के अंतर्गत निर्मित हुआ। जिसके कारण बाढ़ से पीड़ित जनता को रोजगार प्राप्त हुआ। यह महल सोलह वर्ष में बनकर तैयार हुआ। बलुआ पत्थर से बना यह अतिसमृद्ध भवन अभी पूर्व शासकों का निवास स्थान है जिसके एक हिस्से में होटल चलता है और बाकी के हिस्से में संग्राहालय।


गिरदीकोट और सरदार मार्केट

यह छोटी छोटी दुकानों वाली, संकरी गलियों में छितरा रंगीन बाजार शहर के बीचों बीच है और हस्तशिल्प की विस्तृत किस्मों की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है तथा खरीददारों का मनपसन्द स्थल है।


राजकीय संग्राहलय 

इस संग्राहलय में चित्रों, मूर्तियों व प्राचीन हथियारों का उत्कृष्ट समावेश है।


राव जोधा डेजर्ट रॉक पार्क

72 हेक्टेयर में फैला हुआ राव जोधा डेजर्ट रॉक पार्क, मेहरानगढ़ किले के पास स्थित है| इसमें ecologically restored desert और बंजर भूमि वनस्पति है| यह 2006 में निर्मित हुआ था तथा फरवरी 2011 से पर्यटकों के लिए खुला है| इस पार्क और आसपास विशिष्ट ज्वालामुखी चट्टानें और (sandstone) बलुआ पत्थर संरचनाए है| इस पार्क में पर्यटकों के लिए नर्सरी, छोटी – छोटी दुकानें और cafe बने है |

अरना झरना मरु संग्रहालय : संग्रहालय का जालघर

अरना-झरना संग्रहालय को सामान्य जीवन की प्रयोगशाला माना जा सकता है,  इसके ज्ञान का मुख्य स्रोत राजस्थान की विभिन्न जातियों के दैनिक जीवन की संस्कृति है। जो इस विचारधारा को पोषित करता है कि लोक जीवन सदैव ही समसामयिक रहा है। 
इन सिद्धान्तों का सटीकता से आकलन करने के लिये, इस संग्रहालय की पहली प्रायोजना एक ही विषय –  झाड़ू पर केंद्रित है। यहां राजस्थान के सुदूर क्षेत्रों से एकत्रित किये गये सैंकड़ो झाड़ू हैं। परंतु यह मात्र झाड़ुओं का संग्रहण एवं प्रदर्शन नहीं है और न ही यह मात्र आंचलिक जीवन की झांकी है, वरन् झाड़ू के प्रयोग से जुड़े विभिन्न संदर्भ –  जैसे उसे बनाने की स्थानीय विधियाँ और उपयोग किये जाने वाले प्राकृतिक स्रोत, झाड़ू बनाने का अर्थ तंत्र और उसकी मितव्ययता और झाड़ू से जुड़ी मान्यतायें, धारणायें तथा मिथकों को एक सूत्र में जोड़ने की कोशिश है।

बालसंमद झील 

यह जोधपुर से 5 कि॰मी॰ दूर है। इस सुंदर झील का निर्माण ईसवीं सन् 1159 में हुआ था। झील के किनारे खड़ा भव्य महल खूबसूरत बगीचों से घिरा हुआ है। भ्रमण करने के लिए यह एक रमणीय स्थल है।
कायलाना झील 
कायलाना झील जो कि जोधपुर की एक प्रसिद्ध झील है। यह खूबसूरत झील एक आदर्श पिकनिक स्थल है। झील मुख्य शहर से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

मंडोर गार्डन 

यह शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। मारवाड़ की प्राचीन राजधानी में जोधपुर के शासकों के स्मारक हैं। हॉल ऑफ हीरों में चट्टान से दीवार में तराशी हुई पन्द्रह आकृतियां हैं जो हिन्दु देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करती है। अपने ऊँची चट्टानी चबूतरों के साथ, अपने आकर्षक बगीचों के कारण यह प्रचलित पिकनिक स्थल भी बन गया है।

महामंदिर

इसका निर्माण ईसवीं सन 1812 में किया था। यह अपने 84 नक्काशीदार खंभों के कारण असाधारण है।
ओसियां
ओसियां जोधपुर जिले का एक प्राचीन क्षेत्र है तथा वर्तमान में एक तहसील के रूप में विस्तृत है। यह जोधपुर - बीकानेर राजमार्ग की दूसरी दिशा पर रेगिस्तान में बसा हुआ है। इस प्राचीन क्षेत्र की यात्रा के दौरान बीच - बीच में पड़ते हुए रेगिस्तानी विस्तार व छोटे-छोटे गांव अतीत के लहराते हुए भू-भागों में ले जाते है। ओसियां में सुंदर तराशे हुए जैन व ब्राह्मणों के ऐतिहासिक मन्दिर है। इनमें से सबसे असाधारण हैं आरंभ का सूर्य मंदिर और बाद के काली मंदिर, सच्चियाय माता मन्दिर और भगवान महावीर मन्दिर भी स्थित है। यह काफी प्राचीन नगर है पूर्व में इसका नाम उपकेश था।


धवा

धवा जो कि एक वन्य प्राणी उद्यान है जो जोधपुर से 46 किलोमीटर दूर स्थित है जिसमें भारतीय मृग सबसे अधिक संख्या में है। इसे स्थानीय लोग धवा के नाम से भी उच्चारित करते है। यह एक बिश्नोई बाहुल्य इलाका है।

उत्सव व मेले 

जोधपुर मे सभी पर्वों को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, यहां का बेतमार मेला और कागा का शीतला माता मेला बहुत प्रसिद्ध है लोग दूर - दूर से ये मेला देखने आते है। राजस्थान के लोक देवता रामसापीर का मसुरिया मेला भी काफी प्रसिद्ध है।
मारवाड़ उत्‍सव, नागौर का प्रसिद्ध पशु मेला और पीपाड़ का गंगुआर मेला। यह कुछ महत्‍वपूर्ण उत्‍सव है जो जोधपुर में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाते है। यहा पर सावन माह की बड़ी तीज और बेतमार मेला विश्व् प्रसिद्ध है। जोधपुर में गणगौर पूजन का भी विशेष मह्त्व है और इसी उत्सव पर पुराने शहर में गणगौर की झांकियां भी निकाली जाती हैं। धिंगा गवर इसके बाद आने वाला एक आयोजन है- इस दिन महिलाऐं शहर के परकोटे में तरह तरह के स्वांग रच कर रात को बाहर निकलती हैं और पुरुषों को बैंत से मारती हैं अपने प्रकार का एक अनोखा त्योहार है।


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