सीतामाता अभयारण्य
सीतामाता अभयारण्य चित्तौड़गढ़, राजस्थान का वन्य जीव अभयारण्य है।
यह अभयारण्य 422.95 वर्गकिलोमीटर में फैला है, जो जिला प्रतापगढ़ जिले से केवल 40 किलोमीटर, उदयपुर से 108 और चित्तौडगढ़ से करीब ६० किलोमीटर दूर है, जहाँ भारत की तीन पर्वतमालाएं- अरावली, विन्ध्याचल और मालवा का पठार आपस में मिल कर ऊंचे सागवान वनों की उत्तर-पश्चिमी सीमा बनाते हैं। आकर्षक जाखम नदी, जिसका पानी गर्मियों में भी नहीं सूखता, इस वन की जीवन-रेखा है।
यहाँ की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियों में उड़न गिलहरी और चौसिंघा हैं।
अभयारण्य यहाँ के हिरणों को एक समृद्घ चरागाहा उपलब्ध कराता है। इसके अतिरिक्त यहाँ केरकल, जंगली सूअर, पेंगोलिन और तेंदुआ जैसे प्राणी भी पाये जाते हैं।
भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां आते हैं।
वृक्षों, घासों, लताओं और झाडियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की विशेषता हैं, वहीं अनेकानेक दुर्लभ औषधि वृक्ष और अनगिनत जड़ी-बूटियाँ अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय हैं। वनों के उजड़ने से अब वन्यजीवों की संख्या में कमी आती जा रही है।
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि त्रेता युग (रामायण काल) में, राम द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाने के बाद सीता ने यहीं अवस्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में न केवल निवास किया था, बल्कि उसके दोनों पुत्रों- लव और कुश का जन्म भी यहीं वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। यहां तक कि सीता अंततः जहाँ भूगर्भ में समा गयी थी, वह स्थल भी इसी अभयारण्य में स्थित है! सेंकडों सालों से सीता से प्रतापगढ़ के रिश्तों के सम्बन्ध में इतनी प्रबल लोक-मान्यताओं के चलते यह स्वाभाविक ही था कि अभयारण्य का नामकरण सीता के नाम पर किया जाता है।
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