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Saturday, September 17, 2016

Mandore : Old Capital Of Marwad

रंगीलो राजस्थान मारवाड़ शासकों की पुरानी राजधानी : मण्डोर


जोधपुर से नौ किमी दूर  मारवाड़ शासकों की पुरानी राजधानी मण्डोर (Mandore) स्थित है।  मण्डोर का इतिहास राठौड़् शासनकाल से कहीं अधिक प्राचीन है। पाँचवी से बारहवीं शताब्दी के बीच ये गुर्जर प्रतिहारों के विशाल साम्राज्य का हिस्सा था। कुछ समय बाद  नाडोल के चौहानों ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया। इस दौरान दिल्ली से गुलाम वंश और तुगलक शासकों के हमले मण्डोर पर होते रहे। चौहानों से होता हुआ ये इन्द्रा पीड़िहारों और फिर उनसे दहेज में ये राठौड़ नरेश राव चूण्डा के स्वामित्व में आ गया। तबसे लेकर राव जोधा के मेहरानगढ़ को बनाने तक ये राठौड़ राजाओं की राजधानी रहा।

 राठौड़ शासकों के मरने पर उनकी स्मृति में छतरियाँ मण्डोर में ही बनाई जाती रहीं। आज की तारीख़ में मण्डोर में सबसे बड़ी छाप महाराणा अजित सिंह की दिखाई देती है। मण्डोर के खंडहर हो चुके किले तक पहुँचने के लिए सबसे पहले जो द्वार दिखाई देता है वो राणा का बनाया अजित पोल ही है।

जोधपुर पर सत्रह साल (1707-1724) के अपने शासनकाल में महाराणा ने मण्डोर में एक जनाना महल का निर्माण किया। राठौड़ शासनकाल में लाल बलुआ पत्थर से बनाए जाने वाले खूबसूरत झरोखों का दीदार आप इस महल में कर सकते हैं। कहा जाता है कि राजघराने की महिलाओं को गर्मी से निज़ात देने के लिए इस महल का निर्माण किया गया। वर्तमान में  ये महल राजकीय संग्रहालय बन चुका है।  इसे देखने के लिए मण्डोर साढ़े तीन बजे तक पहुँचना जरूरी है। वैसे ये संग्रहालय दस से साढ़ चार तक खुला रहता है।

मण्डोर का एक और आकर्षण यहाँ पर बने देवताओं की साल और वीरों की दालान है। दरअसल ये स्थानीय वीरों और विभिन्न देवी देवताओं की विशालकाय प्रतिमाओं का समूह है जिसकी ख़ासियत ये है कि ये एक ही चट्टान को काट कर बनाया गया है।

मण्डोर के इस पूरे इलाके में जगह जगह विभिन्न राजाओं की छतरियाँ हैं। ये छतरियाँ एक ऊँचे चबूतरे पर बनाई गयी हैं। छतरियों के बीच की जगह में फैला हुआ मण्डोर का प्राचीन उद्यान है। उद्यान परिसर में आपको काले मुँह वाले बंदर हर जगह दिखाई देंगे। वैसे ये पर्यटकों को परेशान नहीं करते है ।

मण्डोर में बनी छतरियों में महाराणा अजित सिंह का देवल अपने अनूठे शिल्प की वज़ह से दूर से ध्यान खींचता है। शाम की धूप जब इन लाल बलुआ पत्थर की दीवारों पर पड़ती हैं तो उस पर बना शिल्प जीवंत हो उठता है।
Ø राजकीय संग्रहालय दस से साढ़ चार तक खुला रहता है।
Ø जब भी आप जोधपुर पहुंचे, सारे ऐतिहासिक स्थलों को देखने के लिए दो दिन का समय जरूर रखें। 
Ø जोधपुर आएँ और यहाँ की मिठाइयाँ और नमकीन ना खाएँ तो आपकी यात्रा अधूरी है। 

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